हिंदी समाज में हीरा डोम की तलाश – स्मृतिलोप से हट कर यथार्थ की ओर
( अकार, 51 – हिंदी समाज पर केंद्रित अंक में जल्द ही प्रकाशित) ‘देवताओं, मंदिरों और ऋषियों का यह देश ! इसलिए क्या यहां सबकुछ अमर है ? वर्ण अमर, जाति अमर, अस्पृश्यता अमर ! ..युग के बाद युग आए ! बड़े बड़े चक्रवर्ती आये ! ..दार्शनिक आए ! फिर भी अस्पृश्यता , विषमता अमर है !