विराट की सौंदर्याभा के जल का स्पर्श!

मुक्तिबोध शृंखला:22 “… पहली कठिनाई यह है कि इस युग का संगीत टूट गया है और जिस निश्चिंतता के साथ लोग अब तक गाते और छंद बनाते आए थे, वह निश्चिंतता तेरे लिए नहीं है।” “…. भावों के तूफ़ान को बुद्धि की जंजीर से कसने की उमंग कोई छोटी उमंग नहीं है। तेरी कविता के … Continue reading विराट की सौंदर्याभा के जल का स्पर्श! →

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