हार्दिक अंधकार की आँखें

मुक्तिबोध शृंखला : 3 “न नेमि बाबू, इस प्रकार तो काम नहीं चलने का. आखिर frustration है तो रहे, वह इतनी बुरी चीज़ नहीं जितना उसका gloom. …पर ज़रा सोचिए तो सही. कि ज़िंदा रहने का हक तो हमें है ही.” मुक्तिबोध नेमिचंद्र जैन को हौसला दिला रहे हैं. उन दोनों के बीच पत्राचार में … Continue reading हार्दिक अंधकार की आँखें →

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