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हर-एक छाती में आत्मा अधीरा है

मुक्तिबोध शृंखला:21 जीवन में अनाह्लाद उत्पन्न होता है अगर हम उसे तत्त्व प्रणाली से बाँधने की कोशिश करें। सैद्धांतिक आत्मविश्वास एक प्रकार की ट्रेजेडी है क्योंकि वह जीवन की पेचीदगी के प्रति पूरी तरह लापरवाह होता है। वह अपने सिद्धांत की काट में जीवन को फिट करने की कोशिश करते हुए उसकी हत्या कर डालता … Continue reading हर-एक छाती में आत्मा अधीरा है →

अंगार-राग और मधु-आवाहन

मुक्तिबोध शृंखला: 20 मुक्तिबोध मृत्युशैय्या पर थे। उनके तरुण प्रशंसक मित्र उनका पहला काव्य संग्रह प्रकाशित करने की तैयारी कर रहे थे। मुक्तिबोध के जीवन काल में ही यह हो रहा था लेकिन वे उसे प्रकाशित देखनेवाले न थे। नाम क्या हो किताब का? अशोक वाजपेयी ने इस घड़ी का जिक्र कई बार अपने संस्मरणों … Continue reading अंगार-राग और मधु-आवाहन →

मनुष्यता: भाव और अभाव

मुक्तिबोध शृंखला:19 ‘स्व’ के प्रश्न से मुक्तिबोध जीवन भर जूझते रहे। स्व के प्रति सचेत होना व्यक्ति बनने के लिए अनिवार्य है। और व्यक्तित्व तो उसके बाद ही बन सकता है। लेकिन वह क्या आसान है? उसमें बहुत मेहनत है। कौन इस पचड़े में पड़े? उससे बेहतर है खुद को भूल जाना। भूल जाने के … Continue reading मनुष्यता: भाव और अभाव →

मैं बदल चला सहास, दीर्घ प्यास

मुक्तिबोध शृंखला:18 स्व का निर्माण, सृजन, परिष्कार आजीवन चलनेवाली प्रक्रिया है। स्व स्वायत्त है लेकिन अपने आप में बंद नहीं। उसकी प्राणमयता उसकी गतिशीलता में है। वह कभी भी पूरा बन नहीं चुका होता है। उसके अधूरेपन का अहसास क्या उसे निर्बल  करता है या उसे चुनौती देता है कि वह अपना विस्तार करता रहे? … Continue reading मैं बदल चला सहास, दीर्घ प्यास →

यह असंतोष की वह्नि स्वार्थ से परे रही

मुक्तिबोध शृंखला:17 ‘अँधेरा मेरा ख़ास वतन जब आग पकड़ता है’, इस पंक्ति पर ध्यान अटक गया। क्या अँधेरे वतन की बात की जा रही है? या अँधेरे की जो कवि का ख़ास वतन है? क्या इस अँधेरे को आग लग जाती है?  वह अँधेरा को कवि का स्वदेश है? मुक्तिबोध का जिक्र आते ही अँधेरा … Continue reading यह असंतोष की वह्नि स्वार्थ से परे रही →

अँधेरा मेरा ख़ास वतन जब आग पकड़ता है

मुक्तिबोध शृंखला:16 ‘समझौता’ कहानी का अंत इस प्रश्न से होता है कि वह कौन सी अदृश्य शक्ति है जो हमें आपको पालतू भालू बन्दर बनाकर नचाती रहती है। किसके हाथ हमारे गले के पट्टे की चेन है। हमारे ‘मैं’  की हत्या किस तरह कर दी जाती है। किस तरह हमें गुलामी बर्दाश्त करना सिखलाया जाता … Continue reading अँधेरा मेरा ख़ास वतन जब आग पकड़ता है →

इस नगरी में सूर्य नहीं है, ज्वाल नहीं है

मुक्तिबोध शृंखला : 15 ‘पक्षी और दीमक’ कहानी में अपने पंख देकर दीमक मोल लेने वाले पक्षी की त्रासदी हमारी-आपकी, सबकी हो सकती है। कहानी सुनाते- सुनाते और उसके अंत तक पहुँचते ही ‘मैं’ को धक्का-सा लगता है। जब आप एक एक कर अपने पंख देते जाएँ तो फिर एक दिन रेंगने के अलावा कोई … Continue reading इस नगरी में सूर्य नहीं है, ज्वाल नहीं है →

जहाँ मेरा हृदय है, वहीं मेरा भाग्‍य है!

मुक्तिबोध शृंखला : 14 ‘पक्षी और दीमक’ मुक्तिबोध के पाठकों की जानी हुई कहानी है। लेकिन जैसा मुक्तिबोध की कई रचनाओं के बारे में कहा जा सकता है, इस कहानी में दो कहानियाँ हैं। और उनके बीच एक आत्म-चिंतन जैसा भी। कहानी एक कमरे में शुरू होती है। लेकिन वह जितना कमरा है उतना ही … Continue reading जहाँ मेरा हृदय है, वहीं मेरा भाग्‍य है! →

फिलिस्तीन के नाम क्षमा पत्र : मनोज कुमार झा

Guest Post: Manoj Kumar Jha प्रिय फिलिस्तीनवासियो,     हम चाहते हैं कि आप इस पत्र को करोड़ों हिन्दुस्तानियों के दुःख और पछतावे की अभिव्यक्ति की तरह पढ़ें  जो हमें सयुंक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति में प्रस्तुत किए गए फिलिस्तीन के प्रस्ताव में अनुपस्थित होने का है। हम न केवल गाजा पट्टी में हुई व्यापक हिंसा से … Continue reading फिलिस्तीन के नाम क्षमा पत्र : म

क्लॉड ईथरली होने की संभावना

मुक्तिबोध शृंखला : 13 ‘क्लॉड ईथरली’ मुक्तिबोध के पाठकों के लिए परिचित कहानी है. कहानी का पात्र मात्र क्लॉड ईथरली नहीं है. एक पात्र है लेखक. वह मुक्तिबोध भी हो सकता है और सिर्फ मुक्तिबोध की एक कृति भी. दूसरा एक जासूस. और तीसरा और केंद्रीय पात्र क्लॉड ईथरली. कहानी या उपन्यास पढ़ते वक्त हमारा … Continue reading क्लॉड ईथरली होने की संभावना →