मुक्तिबोध शृंखला:18 स्व का निर्माण, सृजन, परिष्कार आजीवन चलनेवाली प्रक्रिया है। स्व स्वायत्त है लेकिन अपने आप में बंद नहीं। उसकी प्राणमयता उसकी गतिशीलता में है। वह कभी भी पूरा बन नहीं चुका होता है। उसके अधूरेपन का अहसास क्या उसे निर्बल करता है या उसे चुनौती देता है कि वह अपना विस्तार करता रहे? … Continue reading मैं बदल चला सहास, दीर्घ प्यास →
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