Bad ideas

मित्र : बिना तुम्हारे, यह यथार्थ हो जाएगा उद्भ्रांत व्यंग्य श्री-हीन दीन

मुक्तिबोध शृंखला:38 “मुक्तिबोध की कविताओं में सदैव एक साथीपन का भाव है.” शमशेर बहादुर सिंह ने ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ की भूमिका में लिखा.

कष्टजीवी चिर-व्यस्त रामू के सर्जनशील भाव चलते ही रहते हैं

मुक्तिबोध शृंखला:37 जिस सृष्टि को हम जानते हैं उसमें मनुष्य अकेला प्राणी है जिसके पास सृजन की क्षमता है। सृजन की क्षमता के मायने क्या हैं?

एक कण्टक पौधा ठाठदार मौलिक सुनील

मुक्तिबोध शृंखला:36 प्रत्येक व्यक्ति एक अभिव्यक्ति है। वह अपने समाज की अभिव्यक्ति है, अपनी परम्पराओं की भी अभिव्यक्ति है, लेकिन सबसे पहले और अंत में वह खुद अपनी अभिव्यक्ति है। जैसा गाँधी ने कहा था, मैं अपना गुरु खुद हूँ। मैंने खुद अपने आपको गढ़ा है, क्या इसे अहंकारपूर्ण उक्ति नहीं माना जाएगा?

भीतर तनाव हो, विचारों का घाव हो कि दिल में एक चोट हो

मुक्तिबोध शृंखला:35 मुक्तिबोध के मित्र प्रमोद वर्मा ने 6 जनवरी 1958 को उन्हें एक पत्र लिखा। घर, परिवार, हारी-बीमारी की चर्चा के अलावा उसमें श्रीकांत वर्मा के पहले काव्य-संग्रह ‘भटका मेघ’ की समीक्षा को लेकर प्रमोद वर्मा के मन में जो द्वंद्व चल रहा है, उसका जिक्र है: “श्रीकान्त के ‘भटका मेघ’ की रिव्यू इस … Continue reading भीतर तनाव हो, विचारों का घाव हो कि

जन: उनके साथ मेरी पटरी बैठती है, उन्हीं के साथ मेरी यह बिजली भरी ठठरी लेटती है

मुक्तिबोध शृंखला:34 “मैं उनका ही होता, जिनसे             मैंने रूप-भाव पाए हैं। वे मेरे ही हिये बँधे हैं              जो मर्यादाएँ लाए हैं।” मुक्तिबोध के आरंभिक दौर की कविता ‘मैं उनका ही होता’ की ये पंक्तियाँ तरुण कवि की आकांक्षा को अत्यंत सरल तरीके से व्यक्त करती हैं। वे कौन हैं जिनसे कवि ने अपने … Continue reading जन: उनके साथ मेरी पटरी बैठती है, उन्हीं

लोकमानस और लोकतंत्र : रवीश कुमार

न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव की तरफ से शुरू की गयी आनलाइन व्याख्यानमाला ‘डेमोक्रेसी डायलॉग्ज’ की अगली कड़ी में मेगसेसे पुरस्कार विजेता, प्रख्यात पत्रकार और विश्लेषक रवीश  कुमार हमारे अगले वक्ता होंगे।  आप सभी जानते हैं कि  रवीश कुमार न केवल एक जानेमाने टीवी एंकर हैं बल्कि भारतीय राजनीतिक-सामाजिक परिदृश्य पर पैनी निगाह रखनेवाले निर्भीक लेखक हैं और साहसी … Continue

WE REJECT THE GOVERNMENT’S DECLARATION OF ‘MUSLIM WOMEN’S RIGHTS DAY’

There has been a nationwide outpouring of condemnation, following the announcement by Mr. Mukhtar Abbas Naqvi, Minister of Minority Affairs, declaring Aug 1 as ‘Muslim Women’s Rights Day’ to mark the anniversary of the Triple Talaq law. Over 650 citizens – Muslim and non-Muslim women, men and trans persons, women rights activists, human rights activists, … Continue reading WE REJECT THE GOVERNMENT’S DECLARATION OF ‘MUSLIM WOMEN’S RIGHTS DAY’ →

संदेह, अविश्वास उतना न है नकारशील

       मुक्तिबोध शृंखला:33 अधूरापन मनुष्य की अवस्था को परिभाषित करता है। पूर्णता उसकी आकांक्षा है। इस आकांक्षा के कारण ही वह दूसरों से रिश्ते बनाता है। व्यक्तियों, समुदायों, राष्ट्रों की सीमाओं को लाँघकर नए, अब तक जो अनजान रहा, उससे जुड़ना अपने अधूरेपन से लड़ना है। प्रकृति का सायास साहचर्य भी इसी प्रक्रिया का अंग है। ब्रह्माण्ड के हर … Continue reading संद

इस तरह चूर्ण चट्टान हो कि रेणु-रेणु सूरज पर चले जाएँ

मुक्तिबोध शृंखला:32 अच्छी कविता और बड़ी कविता में फर्क होता है। अच्छी कविता के नियम बड़ी कविता पर लागू नहीं होते। जैसे आम तौर पर कविता का उद्घोषात्मक होना अच्छा नहीं माना जाता। उपदेशात्मकता और शिक्षापरक होना अच्छी कविता के गुण नहीं माने जाते। लेकिन बड़ी कविता शिक्षापरक, यहाँ तक कि उपदेशात्मक होकर भी बड़ी … Continue reading इस तरह चूर्ण चट्टान हो कि रेणु-र

मेरे ही चंगुल से मुझको तुम मुक्त करो!

मुक्तिबोध श्रृंखला:31 “वीरान मैदान, अँधेरी रात, खोया हुआ रास्ता, हाथ में एक पीली मद्धिम लालटेन। यह लालटेन समूचे पथ को पहले से उद्घाटित करने में असमर्थ है। केवल थोड़ी-सी जगह पर ही उसका प्रकाश है। ज्यों-ज्यों वह पग बढ़ाता जाएगा, थोड़ा-थोड़ा उद्घाटन होता जाएगा।” मुक्तिबोध रचना की प्रक्रिया के लिए एक रूपक प्रस्तुत कर  रहे … Continue reading मेरे ही चंगुल से मु