कष्टजीवी चिर-व्यस्त रामू के सर्जनशील भाव चलते ही रहते हैं

मुक्तिबोध शृंखला:37 जिस सृष्टि को हम जानते हैं उसमें मनुष्य अकेला प्राणी है जिसके पास सृजन की क्षमता है। सृजन की क्षमता के मायने क्या हैं? मनुष्य ही अपनी प्रजातिगत सीमा को जानता है और उसका अतिक्रमण भी कर सकता है। प्रजातिगत सीमा या विवशता के दायरे में मनुष्येतर सृष्टि रहती है। अपने संरक्षण और … Continue reading कष्टजीवी चिर-व्यस्त रामू के सर्जनशील भाव चलते ही रहते हैं →

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