मुक्तिबोध शृंखला:38 “मुक्तिबोध की कविताओं में सदैव एक साथीपन का भाव है.” शमशेर बहादुर सिंह ने ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ की भूमिका में लिखा. इसके साथ यह कि मुक्तिबोध की कविता जैसे “हमारी बातें हमीं को सुनाती हो और हम अपने को एकदम चकित होकर देखते हैं, और पहले से और भी अधिक पहचानने … Continue reading मित्र : बिना तुम्हारे, यह यथार्थ हो जाएगा उद्भ्रांत व्यंग्य श्री-हीन दीन →
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