मुक्तिबोध शृंखला : 8 कवि अपने जीवन में एक ही कविता बार-बार लिखता रहता है, जैसे कथाकार एक ही कहानी कहता है. मुक्तिबोध की खोज क्या है जो उनकी हर कविता, कहानी, निबंध, आलोचनात्मक निबंध में अनवरत चलती रहती है? क्या वह सम्पूर्णता की तलाश है? क्या वह एक विशाल जीवन (जिसे वे एक जगह … Continue reading समाज और व्यक्ति की लयतालता →
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