एक कण्टक पौधा ठाठदार मौलिक सुनील

मुक्तिबोध शृंखला:36 प्रत्येक व्यक्ति एक अभिव्यक्ति है। वह अपने समाज की अभिव्यक्ति है, अपनी परम्पराओं की भी अभिव्यक्ति है, लेकिन सबसे पहले और अंत में वह खुद अपनी अभिव्यक्ति है। जैसा गाँधी ने कहा था, मैं अपना गुरु खुद हूँ। मैंने खुद अपने आपको गढ़ा है, क्या इसे अहंकारपूर्ण उक्ति नहीं माना जाएगा? गाँधी से … Continue reading एक कण्टक पौधा ठाठदार मौलिक सुनील →

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