भीतर तनाव हो, विचारों का घाव हो कि दिल में एक चोट हो

मुक्तिबोध शृंखला:35 मुक्तिबोध के मित्र प्रमोद वर्मा ने 6 जनवरी 1958 को उन्हें एक पत्र लिखा। घर, परिवार, हारी-बीमारी की चर्चा के अलावा उसमें श्रीकांत वर्मा के पहले काव्य-संग्रह ‘भटका मेघ’ की समीक्षा को लेकर प्रमोद वर्मा के मन में जो द्वंद्व चल रहा है, उसका जिक्र है: “श्रीकान्त के ‘भटका मेघ’ की रिव्यू इस … Continue reading भीतर तनाव हो, विचारों का घाव हो कि दिल में एक चोट हो →

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