मेरे ही चंगुल से मुझको तुम मुक्त करो!

मुक्तिबोध श्रृंखला:31 “वीरान मैदान, अँधेरी रात, खोया हुआ रास्ता, हाथ में एक पीली मद्धिम लालटेन। यह लालटेन समूचे पथ को पहले से उद्घाटित करने में असमर्थ है। केवल थोड़ी-सी जगह पर ही उसका प्रकाश है। ज्यों-ज्यों वह पग बढ़ाता जाएगा, थोड़ा-थोड़ा उद्घाटन होता जाएगा।” मुक्तिबोध रचना की प्रक्रिया के लिए एक रूपक प्रस्तुत कर  रहे … Continue reading मेरे ही चंगुल से मुझको तुम मुक्त करो! →

Tags

Source