जहाँ मेरा हृदय है, वहीं मेरा भाग्‍य है!

मुक्तिबोध शृंखला : 14 ‘पक्षी और दीमक’ मुक्तिबोध के पाठकों की जानी हुई कहानी है। लेकिन जैसा मुक्तिबोध की कई रचनाओं के बारे में कहा जा सकता है, इस कहानी में दो कहानियाँ हैं। और उनके बीच एक आत्म-चिंतन जैसा भी। कहानी एक कमरे में शुरू होती है। लेकिन वह जितना कमरा है उतना ही … Continue reading जहाँ मेरा हृदय है, वहीं मेरा भाग्‍य है! →

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