मुक्तिबोध शृंखला : 5 “मुझे समझ में नहीं आता कि कभी-कभी खयालों को, विचारों को भावनाओं को क्या हो जाता है! वे मेरे आदेश के अनुसार मन में प्रकट और वाणी में मुखर नहीं हो पाते.” यह क्या सिर्फ मुक्तिबोध का ही संकट है? हम सबके साथ यह होता है कि प्रायः वह जो इतना … Continue reading ज्ञान के दाँत और ज़िंदगी की नाशपाती →
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