मुक्तिबोध शृंखला : 9 पढ़ रहा था मुक्तिबोध को और भटक गया अज्ञेय की ओर. दोष मेरा जितना नहीं उतना नामवर सिंह का है. “साहित्यिक की डायरी” की समीक्षा करते हुए अज्ञेय से उनकी तुलना करते हुए नामवरजी ने उनमें देखी है ‘अमानुषिकता की हद को छूनेवाली कलात्मक निःसंगता.’ वे ‘साहित्यिक की डायरी’ के आस … Continue reading व्यक्ति और भाषा: सक्षम, सप्राण और अर्थदीप्त →
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