पूँजीवाद : तू है मरण, तू है रिक्त, तू है व्यर्थ

मुक्तिबोध शृंखला : 24 मनुष्य इतना अकेला क्यों है? मनुष्यों में इतने फासले क्यों हैं? क्यों अमानवीय दूरियां हम सबको घेरे हुए हैं? या एक दूसरे से अलग किए हुए हैं? जीवन में इतना ओछापन क्यों हैं? सतहीपन, छिछलापन क्यों हैं? क्यों इंसान खुद को हासिल नहीं कर पाता? क्यों हम सब अपने बदले किसी … Continue reading पूँजीवाद : तू है मरण, तू है रिक्त, तू है व्यर्थ →

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