मुक्तिबोध शृंखला:33 अधूरापन मनुष्य की अवस्था को परिभाषित करता है। पूर्णता उसकी आकांक्षा है। इस आकांक्षा के कारण ही वह दूसरों से रिश्ते बनाता है। व्यक्तियों, समुदायों, राष्ट्रों की सीमाओं को लाँघकर नए, अब तक जो अनजान रहा, उससे जुड़ना अपने अधूरेपन से लड़ना है। प्रकृति का सायास साहचर्य भी इसी प्रक्रिया का अंग है। ब्रह्माण्ड के हर … Continue reading संदेह, अविश्वास उतना न है नकारशील →
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