मुक्तिबोध शृंखला:34 “मैं उनका ही होता, जिनसे मैंने रूप-भाव पाए हैं। वे मेरे ही हिये बँधे हैं जो मर्यादाएँ लाए हैं।” मुक्तिबोध के आरंभिक दौर की कविता ‘मैं उनका ही होता’ की ये पंक्तियाँ तरुण कवि की आकांक्षा को अत्यंत सरल तरीके से व्यक्त करती हैं। वे कौन हैं जिनसे कवि ने अपने … Continue reading जन: उनके साथ मेरी पटरी बैठती है, उन्हीं के साथ मेरी यह बिजली भरी ठठरी लेटती है →
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