सावित्रीबाई फुले

‘विश्व गुरु का सत्य’ और ज्ञान की दूसरी परम्परा : धीरेश सैनी

Guest Post by Dheeresh Saini – Review of ‘Charvak ke Vaaris’  `चार्वाक के वारिस` को पढ़ते हुए ही मुझे हिंदी के आलोचक और जेएनयू के रिटायर्ड प्रोफेसर नामवर सिंह के निधन की ख़बर मिली। एक ऐसी किताब को, जो भारतीय समाज-संस्कृति में अतीत से लेकर आज तक ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न प्रगतिशील, विवेकवादी, तर्कवादी और विद्रोही धाराओं के प्रति वर्णवादी-ब्राह्मणवादी शक्तियों …

विचार ही अब द्रोह !

(‘चार्वाक के वारिस : समाज, संस्कृति एवं सियासत पर प्रश्नवाचक ‘ की प्रस्तावना से) कार्ल मार्क्‍स की दूसरी जन्मशती दुनिया भर में मनायी जा रही है। दिलचस्प है कि विगत लगभग एक सौ पैंतीस सालों में जबसे उनका इन्तक़ाल हुआ, कई कई बार ऐसे मौके आए जब पूंजीवादी मीडिया में यह ऐलान कर दिया कि … Continue reading विचार ही अब द्रोह ! →