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संस्कृति की ज़मीन, बदलाव के बीज : रवि सिन्हा

Guest Post by Ravi Sinha 1. मार्क ट्वेन ने कभी कहा था – धूम्रपान की आदत छोड़ने में मैं ख़ासा माहिर हूँ; यह काम मैंने हज़ारों बार किया है.सन्धान की यह केवल तीसरी शुरुआत है. वह भी काग़ज़ पर छप कर नहीं. अभी केवल वेब-पेज़ के रूप में. अतः यह दावा तो नहीं किया जा … Continue reading संस्कृति की ज़मीन, बदलाव के बीज : रवि सिन्हा →

हिंदी समाज में हीरा डोम की तलाश – स्मृतिलोप  से हट कर यथार्थ की ओर

( अकार, 51 – हिंदी समाज पर केंद्रित अंक में जल्द ही प्रकाशित) ‘देवताओं, मंदिरों और ऋषियों का यह देश ! इसलिए क्या यहां सबकुछ अमर है ? वर्ण अमर, जाति अमर, अस्पृश्यता अमर ! ..युग के बाद युग आए ! बड़े बड़े चक्रवर्ती आये ! ..दार्शनिक आए ! फिर भी   अस्पृश्यता  , विषमता अमर है !